स्वार्थी मतियाँ
पौढ़ शिखर के तुंग
खरी थी पावन निर्मला
सिंधु से मिली गंग
बनी खारी सकल अमला
गोद भरा अब गाद
हमारी मूढ़ मतियों ने
सदा किया था गर्व
अनोखी वीर सतियों ने
बन बहती वरदान
कभी था रूप भी उजला।।
मनुज बड़ा ही ठूंठ
पहनकर स्वार्थ की पट्टी
खेले भारी खेल
उथलकर काल की घट्टी
दलदल बनाता और
निशाना भी बने पहला।।
गहरे हैं अवगाह
भयानक आपदा होगी
होंगे सकल अनिष्ट
निरपराधी भुगत भोगी
पिघल रहे मुख ज्वाल
पत्थर हृदय नहीं दहला।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
वाह।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका सृजन सार्थक हुआ।
Deleteबहुत सुन्दर काव्यमय अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका सृजन सार्थक हुआ।
Deleteविमर्शपूर्ण रचना।
ReplyDeleteसुंदर शब्द विन्यास।
जी बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी सृजन सार्थक हुआ।
Deleteगहरे हैं अवगाह
ReplyDeleteभयानक आपदा होगी
होंगे सकल अनिष्ट
निरपराधी भुगत भोगी
पिघल रहे मुख ज्वाल
पत्थर हृदय नहीं दहला।।
वाह!!!!
कमाल का सृजन
प्राकृतिक आपदाओं में मनुष्य की अनदेखियां ...
अद्भुत एवं लाजवाब ।