कवि और सृजन
जब मधुर आह्लाद से भर
कोकिला के गीत चहके
शुष्क वन के अंत पट पर
रक्त किंशुक लक्ष दहके।
कल्पना की ड़ोर थामें
कवि हवा में चित्र भरता
लेखनी से फूट कर फिर
चासनी का मेघ झरता
व्यंजना के पुष्प दल पर
चंचरिक सा चित्त बहके।।
जब सुगंधित से अलंकृत
छंद लय बध साज बजते
झिलमिलाते रेशमी से
उर्मियों के राग सजते
सोत बहते रागनी के
पंच सुर के पात लहके।।
वास चंदन की सुकोमल
तूलिका में ड़ाल लेता
रंग धनुषी सात लेकर
टाट को भी रंग देता
शब्द धारण कर वसन नव
ठाठ से नभ भाल महके।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(१४-१०-२०२१) को
'समर्पण का गणित'(चर्चा अंक-४२१७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत आभार आपका चर्चा मंच पर उपस्थित रहूंगी।
Deleteचर्चा पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
सस्नेह।
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए।
सादर।
कवि की रचना प्रक्रिया का सुंदर चित्रण
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका अनिता जी, ब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
Deleteसस्नेह।
जब सुगंधित से अलंकृत
ReplyDeleteछंद लय बध साज बजते
झिलमिलाते रेशमी से
उर्मियों के राग सजते
सोत बहते रागनी के
पंच सुर के पात लहके।।
बहुत ही सुंदर😍💓
ढेर सा स्नेह आभार मनीषा जी आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ।
Deleteसस्नेह।
ReplyDeleteवास चंदन की सुकोमल
तूलिका में ड़ाल लेता
रंग धनुषी सात लेकर
टाट को भी रंग देता
शब्द धारण कर वसन नव
ठाठ से नभ भाल महके।।...कवि मन की सुंदर अभिव्यंजना ।
मोहक जिज्ञासा जी मोहक अंदाज है आपका ,मन खुश हुआ सदा स्नेह बनाए रखें।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना सखी।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सखी।
Deleteउत्साहवर्धक हुआ।
सस्नेह।
कल्पना की ड़ोर थामें
ReplyDeleteकवि हवा में चित्र भरता
लेखनी से फूट कर फिर
चासनी का मेघ झरता
व्यंजना के पुष्प दल पर
चंचरिक सा चित्त बहके।।
वाह!!!
कवि की कल्पना और छन्दबद्ध रचना
लाजवाब नवगीत रच डाला
बहुत ही उत्कृष्ट।
वाह! सुधा जी आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित होती है।
Deleteविस्तृत भाव प्रणव टिप्पणी के लिए हृदय से आभार।
सस्नेह।