Tuesday 3 August 2021

सरसी नागफणी

 

सरसी नागफणी


महक उठे है मधुबन जैसे

पात हृदय के जो लूखे

अक्षि पार्श्व दर्शन जो होते

पतझड़ खिल जाते रूखे।


व्याकुल होकर मोर नाचता

आशा अटकी व्योम छोर

आके नेह घटाएं बरसो

है धरा का निर्जल पोर

अकुलाहट पर पौध रोप दे

दृग रहे दरस के भूखे।।


कैसी तृप्ती है औझड़ सी

तृषा बिना ऋतु के झरती 

अनदेखी सी चाह हृदय में

बंद कपाट उर्मि  भरती

लहकी नागफणी मरुधर में 

लू तप्त न फिर भी सूखे।।


पंथ जोहते निनिर्मेष से

कोई टोह नहीं आती

चाँद रात में दुखित चकोरी

दग्ध कौमुदी तड़पाती

कब  तक होगी शेष प्रतीक्षा

झेले क्यों पीर बिजूखे।।


कुसुम कोठारी "प्रज्ञा"

24 comments:

  1. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, कुसुम दी।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।
      सस्नेह।

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  2. बेहद खूबसूरत सृजन

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    1. बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन के लिए।
      सादर।

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  3. पंथ जोहते निनिर्मेष से

    कोई टोह नहीं आती

    चाँद रात में दुखित चकोरी

    दग्ध कौमुदी तड़पाती

    कब तक होगी शेष प्रतीक्षा

    झेले क्यों पीर बिजूखे।...प्रकृति की छटा और मानव मन दोनों एक दूसरे के पूरक हैं बड़े हो सहज ढंग से प्रकृति को मन से जोड़ दिया आपने। सुंदर छायाचित्र। बहुत शुभकामनाएं।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी, आपकी प्रतिक्रिया सदा रचना को और रचनाकार को एक मूल्यांकन देती है।
      सस्नेह।

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  4. बहुत बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  5. "जगत जोत सी जलती रही कोई कहे वला तो कोई देवदासी सुकुमारी, नागफन फिर कुचला जाऐ जो हो इस कुंठित समाज के दुराचारी । "

    मैम आपकी रचना बहुत अच्छी है ।������ धन्यवाद!

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      मंच पर सदा स्वागत है आपका।
      सादर।

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  6. आपकी कविताओं को साधारण कविताओं की श्रेणी में रखा ही नहीं जा सकता कुसुम जी। वे असाधारण ही होती हैं जिन्हें शब्दों के पार जाकर समझना एवं हृदयंगम करना होता है। यह भी ऐसी ही एक कविता है। क्या प्रशंसा करूं? यह अपनी प्रशंसा आप है।

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    1. मैं अभिभूत हूँ जितेंद्र जी आपकी प्रतिक्रिया मेरे नवगीत को नवगीत की कसौटी पर प्रमाणिकता दे रही हैं ।
      जब कुछ भी लिखा शब्दों के पार जाकर समझना हो तो समझो रचनाकार व्यंजनाएं निभाने में कामयाब हुआ। और व्यंजना नवगीत का विशेष धर्म है।
      आपकी प्रतिक्रिया का हर शब्द मुझे और लेखन दोनों के लिए एक विशेष उपलब्धि है ।
      इस के लिए आभार शब्द बहुत छोटा होगा बस आपकी गहन दृष्टि का उपहार मिलता रहे ।
      सादर ।

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  7. सुन्दर प्रस्तुति

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर।

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  8. शानदार लेखनी... मैं चाहकर भी आपकी तरह नहीं लिख सकता....।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका,और मैं भी कभी आप जैसे सारगर्भित कहाँ लिख पाई हूँ।
      लेखन की विशेषता विविधता ही हर एक की अलग पहचान है।
      आपकी उत्साहवर्धक उपस्थित सदा लेखन को प्रोत्साहन देती है ।
      सादर।

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  9. सुंदर सृजन आदरणीय , बहुत बधाइयाँ ।

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    1. जी सादर आभार आपका।
      ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
      सादर।

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  10. वाह!गज़ब की लेखनी है दी आपकी।
    बस मुझे तारीफ़ करनी नहीं आई।
    सादर

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    1. बहुत बहुत सा स्नेह आभार उत्साहवर्धक शब्दों के साथ आपकी उपस्थिति सदा मन को प्रफुल्लित करती है ।
      सस्नेह।

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  11. बहुत सुंदर रचना, अक्षर अक्षर बोल रहे हैं

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      सस्नेह।

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  12. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी 👌👌

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सखी।
      सस्नेह।

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  13. बहुत बहुत आभार आपका मीना जी।
    चर्चा मंच पर शामिल होना सदा सुखद अनुभव है, उपस्थित रहूंगी।
    सादर सस्नेह।

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