सरसी नागफणी
महक उठे है मधुबन जैसे
पात हृदय के जो लूखे
अक्षि पार्श्व दर्शन जो होते
पतझड़ खिल जाते रूखे।
व्याकुल होकर मोर नाचता
आशा अटकी व्योम छोर
आके नेह घटाएं बरसो
है धरा का निर्जल पोर
अकुलाहट पर पौध रोप दे
दृग रहे दरस के भूखे।।
कैसी तृप्ती है औझड़ सी
तृषा बिना ऋतु के झरती
अनदेखी सी चाह हृदय में
बंद कपाट उर्मि भरती
लहकी नागफणी मरुधर में
लू तप्त न फिर भी सूखे।।
पंथ जोहते निनिर्मेष से
कोई टोह नहीं आती
चाँद रात में दुखित चकोरी
दग्ध कौमुदी तड़पाती
कब तक होगी शेष प्रतीक्षा
झेले क्यों पीर बिजूखे।।
कुसुम कोठारी "प्रज्ञा"
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, कुसुम दी।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।
Deleteसस्नेह।
बेहद खूबसूरत सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन के लिए।
Deleteसादर।
पंथ जोहते निनिर्मेष से
ReplyDeleteकोई टोह नहीं आती
चाँद रात में दुखित चकोरी
दग्ध कौमुदी तड़पाती
कब तक होगी शेष प्रतीक्षा
झेले क्यों पीर बिजूखे।...प्रकृति की छटा और मानव मन दोनों एक दूसरे के पूरक हैं बड़े हो सहज ढंग से प्रकृति को मन से जोड़ दिया आपने। सुंदर छायाचित्र। बहुत शुभकामनाएं।
बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी, आपकी प्रतिक्रिया सदा रचना को और रचनाकार को एक मूल्यांकन देती है।
Deleteसस्नेह।
बहुत बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDelete"जगत जोत सी जलती रही कोई कहे वला तो कोई देवदासी सुकुमारी, नागफन फिर कुचला जाऐ जो हो इस कुंठित समाज के दुराचारी । "
ReplyDeleteमैम आपकी रचना बहुत अच्छी है ।������ धन्यवाद!
जी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteमंच पर सदा स्वागत है आपका।
सादर।
आपकी कविताओं को साधारण कविताओं की श्रेणी में रखा ही नहीं जा सकता कुसुम जी। वे असाधारण ही होती हैं जिन्हें शब्दों के पार जाकर समझना एवं हृदयंगम करना होता है। यह भी ऐसी ही एक कविता है। क्या प्रशंसा करूं? यह अपनी प्रशंसा आप है।
ReplyDeleteमैं अभिभूत हूँ जितेंद्र जी आपकी प्रतिक्रिया मेरे नवगीत को नवगीत की कसौटी पर प्रमाणिकता दे रही हैं ।
Deleteजब कुछ भी लिखा शब्दों के पार जाकर समझना हो तो समझो रचनाकार व्यंजनाएं निभाने में कामयाब हुआ। और व्यंजना नवगीत का विशेष धर्म है।
आपकी प्रतिक्रिया का हर शब्द मुझे और लेखन दोनों के लिए एक विशेष उपलब्धि है ।
इस के लिए आभार शब्द बहुत छोटा होगा बस आपकी गहन दृष्टि का उपहार मिलता रहे ।
सादर ।
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसादर।
शानदार लेखनी... मैं चाहकर भी आपकी तरह नहीं लिख सकता....।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका,और मैं भी कभी आप जैसे सारगर्भित कहाँ लिख पाई हूँ।
Deleteलेखन की विशेषता विविधता ही हर एक की अलग पहचान है।
आपकी उत्साहवर्धक उपस्थित सदा लेखन को प्रोत्साहन देती है ।
सादर।
सुंदर सृजन आदरणीय , बहुत बधाइयाँ ।
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका।
Deleteब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
सादर।
वाह!गज़ब की लेखनी है दी आपकी।
ReplyDeleteबस मुझे तारीफ़ करनी नहीं आई।
सादर
बहुत बहुत सा स्नेह आभार उत्साहवर्धक शब्दों के साथ आपकी उपस्थिति सदा मन को प्रफुल्लित करती है ।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुंदर रचना, अक्षर अक्षर बोल रहे हैं
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी 👌👌
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सखी।
Deleteसस्नेह।
बहुत बहुत आभार आपका मीना जी।
ReplyDeleteचर्चा मंच पर शामिल होना सदा सुखद अनुभव है, उपस्थित रहूंगी।
सादर सस्नेह।