आज नया एक गीत लिखूँ मैं ।
वीणा का गर
तार न झनके
मन का कोई
साज लिखूँ मैं।
आज नया एक गीत लिखूँ मैं।
मीहिका से
निकला है मन तो
सूरज की कुछ
किरण लिखूँ मैं।
आज नया एक गीत लिखूँ मैं।
धूप सुहानी
निकल गयी तो
मेहनत का
संगीत लिखूँ मैं।
आज नया एक गीत लिखूँ मै।
कुछ खग के
कलरव लिख दूँ
कुछ कलियों की
चटकन लिख दूँ
आज नया एक गीत लिखूँ मैं।
क्षितिज मिलन की
मृगतृष्णा है
धरा मिलन का
राग लिखूँ मैं ।
आज नया एक गीत लिखूँ मैं ।
चंद्रिका ने
ढका विश्व को
शशि प्रभा की
प्रीत लिखूँ मैं ।
आज नया एक गीत लिखूँ मैं।
कसुम कोठारी "प्रज्ञा"
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 09
ReplyDeleteनवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बेहद खूबसूरत गीत।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (१०-११-२०२०) को "आज नया एक गीत लिखूं"(चर्चा अंक- 3881) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
बेहतरीन बहुत ही सुंदर
ReplyDeleteसुंदर पंक्तियाँ..!
ReplyDeleteबहुत प्रशंसनीय सुन्दर रचना |
ReplyDeleteवाह !बहुत ही सुंदर दी।
ReplyDeleteनिर्मल सी खूबसूरत अभिव्यक्ति।
सादर
बेहद खूबसूरत 👌👌
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