Thursday 19 November 2020

प्रारब्ध और पुरुषार्थ


 प्रारब्ध और पुरुषार्थ


भूखी भूख विकराल दितिजा 

जीवन ऊपर भार बनी।

मीठी नदियाँ मिली सिंधु से

बूंद बूंद तक खार बनी।


बिन ऊधम तो जीवन देखा

रुकी मोरी का पंक है 

मसक उड़ाते पहर आठ जब

लगता तीक्ष्ण सा डंक है 

लद्धड़ बन जो बैठे उनकी

फटकर चादर तार बनी ।।


निर्धन दीन निस्हाय निर्बल

कैसा प्रारब्ध ढो रहे

अकर्मण्य भी बैठे ठाले 

नित निज भाग्य को रो रहे

टपक रहा था श्रम जब तन से 

रोटी का आधार बनी।


प्यासे को है चाह नीर की

कुआं खोद पानी लाए 

टूट जाते नीड़ पंछी के

जोड़ तिनके घर बनाए 

सफलता उन्हें मिली जिनकी

हिम्मत ही आधार बनी।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

31 comments:

  1. विस्मित करती है आपकी रचनाएँ। आज पुनः यही घटित हुआ। आपकी कल्पनाओं का संसार अनूठा है।
    साधुवाद। ।।।।।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी अप्रितम प्रशंसा ने रचना को अमूल्य बना दिया।
      मैं अनुग्रहित हुई इस अपरिमित उत्साहवर्धन से ।
      बहुत बहुत आत्मीय आभार आपका।

      Delete
  2. प्यासे को है चाह नीर की

    कुआं खोद पानी लाए

    टूट जाते नीड़ पंछी के

    जोड़ तिनके घर बनाए

    सफलता उन्हें मिली जिनकी

    हिम्मत ही आधार बनी।।...सत्यता को उजागर करती सुंदर कृति..।गहरी सोच..।
    "जिज्ञासा की जिज्ञासा "ब्लॉग पर आपका स्वागत है..सादर..।

    ReplyDelete
    Replies
    1. वाह! जिज्ञासा जी मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई,और उत्साह वर्धन हुआ ।
      सस्नेह आभार।
      आपके ब्लॉग पर मौका मिलते ही जा आती हूं,
      बहुत सुंदर सृजन है आपका।

      Delete
  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 20 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  4. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      ब्लाग पर सदा ही सादर स्वागत है आपका।

      Delete
  5. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२१-११-२०२०) को 'प्रारब्ध और पुरुषार्थ'(चर्चा अंक- ३८९८) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका में चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
      सादर।

      Delete
  6. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

      Delete
  7. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

      Delete
  8. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।

      Delete
  9. अर्थपूर्ण रचना, मुग्ध करती है - - आपकी रचनाओं में एक सहज प्रवाह है, जो अपना अलग प्रभाव छोड़ती है - - नमन सह।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      आपकी टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ,और नव उर्जा का संचार भी।
      सादर।

      Delete
  10. प्यासे को है चाह नीर की

    कुआं खोद पानी लाए

    टूट जाते नीड़ पंछी के
    जोड़ तिनके घर बनाए
    सफलता उन्हें मिली जिनकी
    हिम्मत ही आधार बनी

    –अद्धभुत प्रस्तुति... उम्दा प्रस्तुति हेतु बधाई

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका विभाग जी।
      आपकी उपस्थिति ही लेखन की सार्थकता है ।
      साभार।

      Delete
  11. Replies
    1. आपको ब्लाग पर देख कर मन प्रसन्न हुआ ।
      बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

      Delete
  12. हमेशा की तरह इस कव‍िता ''प्रारब्ध और पुरुषार्थ''ने भी मन मोह ल‍िया कुसुम जी, निर्धन दीन निस्हाय निर्बल

    कैसा प्रारब्ध ढो रहे

    अकर्मण्य भी बैठे ठाले

    नित निज भाग्य को रो रहे

    टपक रहा था श्रम जब तन से

    रोटी का आधार बनी।...वाह बहुत खूब ..सदैव की भांत‍ि

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका अलकनंदा जी आपकी मोहक टिप्पणी रचना को प्रवाह देती है,और मुझमें उर्जा का संचार।
      सदा अभिभूत हूं मैं।
      सस्नेह।

      Delete
  13. निर्धन दीन निस्हाय निर्बल

    कैसा प्रारब्ध ढो रहे

    अकर्मण्य भी बैठे ठाले

    नित निज भाग्य को रो रहे

    टपक रहा था श्रम जब तन से

    रोटी का आधार बनी।

    बहुत ही सुन्दर सार्थक एवं लाजवाब नवगीत...अद्भुत व्यंजनाओं से सजा... वाह!!!!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी, आपकी प्रतिक्रिया और स्नेह सदा मेरे लिए उपहार जैसा है ।
      सस्नेह।

      Delete
  14. बेहतरीन नवगीत सखी।

    ReplyDelete
  15. प्यासे को है चाह नीर की

    कुआं खोद पानी लाए

    टूट जाते नीड़ पंछी के

    जोड़ तिनके घर बनाए

    सफलता उन्हें मिली जिनकी

    हिम्मत ही आधार बनी।।

    आपका प्रारब्ध करता स्तब्ध निश्चय ही जटिल जीवन को सरल बनाती कविता
    आपकी रचना को सादर नमन

    ReplyDelete
  16. वाह सधु जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई ,
    सुंदर सौम्य टिप्पणी सदा उत्साह वर्धन करती है।
    सस्नेह आभार।

    ReplyDelete