कवि के स्वर पन्नों पर
नयन मुकुर हो आज बोलते
बंद होंठ में गीत हुए।।
अव्यक्त लेखनी में रव है
कौन मूक ये शब्द पढ़े
जब फड़फड़ा बुलाते पन्ने
मोहक लेख मानस गढ़े
फिर उभरती व्यंजनाएं कुछ
भाव शल्यकी मीत हुए।।
रूखे मरू मधुबन बनादे
काव्य सार बह के बरसे
खिले कुसुम आकाश मधुरिमा
तम पर चंदनिया सरसे
मृदुल थाप बादल पर बजती
मारुत सुर संगीत हुये।।
कविता जो रुक जाये तो फिर
कल्पक कब जीवित रहता
रुकी लेखनी द्वंद हृदय में
फिर कल्पना कौन कहता
मौन गूँजते मन आँगन में
कंपित से भयभीत हुये।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति..।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteब्लाग पर सदा स्वागत है आपका ।
सस्नेह।
वाह
ReplyDeleteसादर आभार आपका आदरणीय।
Deleteकविता जो रुक जाये तो फिर
ReplyDeleteकल्पक कब जीवित रहता
रुकी लेखनी द्वंद हृदय में
फिर कल्पना कौन कहता
मौन गूँजते मन आँगन में
कंपित से भयभीत हुये।।
कवि की कल्पना और लेखनी का मौन सच में कवि के मन आँगन में गूँजने लगता है....
बहुत ही लाजवाब नवगीत...
वाह!!!
सुंदर मुग्ध करती प्रतिक्रिया सुधा जी।
Deleteआपने रचना को प्रवाह दिया ।
सस्नेह।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19.11.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत बहुत आभार आपका मैं मंच पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
Deleteसादर
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 19 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी सादर आभार मैं अवश्य उपस्थित रहूंगी।
Deleteसादर।
काव्य सार बह कर बहा रहा है । अति सुन्दर ।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका।
Deleteवाह!बेहतरीन सृजन दी काफ़ी बार पढ़ा सृजन को हर बार बेहतरीन बस बेहतरीन 👌
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteबहुत सा स्नेह आभार बहना।
Deleteसस्नेह।
कविता जो रुक जाये तो फिर
ReplyDeleteकल्पक कब जीवित रहता
रुकी लेखनी द्वंद हृदय में
फिर कल्पना कौन कहता
सुंदर अभिव्यक्ति सखी।