Wednesday, 26 April 2023

औषधियाँ दोहो में


 चलें प्रकृति की ओर,दादी नानी की सुझाई रामबाण औषधियाँ दोहो में।


अश्वगंधा (असगंध) 

चूर्ण ग्राम असगंध दो करें शहद सह योग।

जो पीपल के साथ लें, दूर हटे क्षय रोग।।


मुलहठी (यष्टिमधु) 

प्रतिरोधक क्षमता बढ़े, श्वांसकास हितकार।

जेष्टमधी सेवन करें, वैद्यक नियम विचार।‌


ब्राह्मी 

ब्राह्मी औषध गुण भरी, काटे कई विकार।

बुद्धि वृद्धिकर योग है, बहुल व्याधि प्रतिकार।।


अशोक 

पथरी सूजन दर्द को, करता दूर अशोक।

महिला रोगों के लिए,नाम बड़ा इस लोक।।


नीम (निम्ब) 

नीम गुणों की खान है, सहज करो सब प्राप्त।

अमृत तुल्य ये पेड़ है, भारत भू पर व्याप्त।।


सहजन 

सहजन का हर भाग ही, पौष्टिकता का नाम।

स्वाद सदा उत्तम लगे, और न्यून है दाम।।


तुलसी

पूजनीय यह पौध है, तुलसी गुण की खान।

वात पित्त कफ में सदा, रामबाण ही मान।।


भृंगराज 

भृंगराज सेवन करो, रोग त्वचा के दूर।

बालों को अमृत मिले, उदर रोग चकचूर ।।


गिलोय (गुडूचि, अमृता)

तापमान तन का घटा, ज्वर में दे आराम।

जीर्ण शीर्ण हो देह भी, करती अमृता काम।।


शतावरी (शतावर)

गर्भवती सेवन करे, यदि शतावरी चूर्ण।

संग सोंठ अजगंध हो, स्वस्थ रहेगा भूर्ण।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Thursday, 20 April 2023

दोहे नीति के

दोहे नीति के 


१)करो प्यार निज देश से, इससे बढ़ता मान।

यही हमारा गर्व हो, यही हमारी आन।।


२)जल को जीवन जानिये, और मानिए प्राण।

जल बिना इस सृष्टि में, रहे न कोई त्राण।


३)भूगर्भा है भूमिजा, रखे क्षमा का रूप।।

पूजे हलधर प्रेम से, मान देवी स्वरूप।।


४)नारी बस कोमल नही, काम पड़े तलवार।

चंदा सी शीतल सही, नेत्र बाण की धार।।


५)कर्म निरंतर जो करे, वो पाते हैं लक्ष्य।

थककर कभी न बैठना, कर्म ही सुदृढ़ पक्ष्य।।


६)कठिन काम को साधते, श्वेद बहे दिन रात।

कर्मकार की साधना, भूले मोह स्व गात।।


७)भाव बिना तो शब्द भी, होते कोरा जाल।

चंदन संग सुगंध ही, चढे ईश के भाल।। 


८)अपना घर प्यारा लगे, जैसे हो निज पूत।

चादर मन भावन बने, जोड़ जोड़कर सूत।।


९)निर्बाधित गति काल की, कौन लगाए रोक।

कभी गहन अंधेर है ,कभी शुभ्र आलोक।।


१०)सबका साथ रहे सदा, हो जीवन में प्यार।

हार विजय का हो गले,आए कभी न हार।।


 कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

 

Friday, 14 April 2023

शरद गमन


 शरद गमन


भानु झाँके बादलों से

शीत क्यों अब भीत देती

वो चहकती सुबह जागी

नव प्रभा को प्रीत देती।।


लो कुहासा भग गया अब

धूप ने आसन बिछाया

ऐंद्रजालिक ओस ओझल

कौन रचता रम्य माया

पर्वतों ने गीत गाए

ये पवन संगीत देती।।


मोह निद्रा त्याग के तू

छोड़ दे आलस्य मानव

कर्म निष्ठा दत्तचित बन

श्रेष्ठ तू हैं विश्व आनव

उद्यमी अनुभूतियाँ ही

हार में भी जीत देती।।


बीज माटी में छिपे से

अंकुरण को हैं मचलते

नेह सिंचित इस धरा पर

मानवों के भाग्य पलते

और तम से जो डरा हो

सूर्य किरणें मीत देती।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'