गीतिका/212 1212 1212 1212.
प्रकृति के रूप
आसमान अब झुका धरा भरी उमंग से।
लो उठी अहा लहर मचल रही तरंग से।।
शुचि रजत बिछा हुआ यहाँ वहाँ सभी दिशा।
चाँदनी लगे टहल-टहल रही समंग से।।
वो किरण लुभा रही चढ़ी गुबंद पर वहाँ।
दौड़ती समीर है सवार हो पमंग से।।
रूप है अनूप चारु रम्य है निसर्ग भी ।
दृश्य ज्यों अतुल दिखा रही नटी तमंग से।।
जब त्रिविधि हवा चले इलय मचल-मचल उठे।
और कुछ विशाल वृक्ष झूमते मतंग से।
वो तुषार यूँ 'कुसुम' पिघल-पिघल चले वहाँ।
स्रोत बन सुरम्य अब उतर रहे उतंग से।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
इलय/गतिहीन
अहा ! प्रकृति का ऐसा अनूठा रूप
ReplyDeleteकमाल की गीतिका !
मनोहर ...लाजवाब...
वाह!!!
हृदय से आभार आपका सुधा जी आपकी रसभीनी प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
Deleteसस्नेह।
वाह! इतना सुंदर गीत मन को सराबोर कर गया।
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका विश्व मोहन जी , अपको रचना अच्छी लगी।
Deleteलेखन को नव ऊर्जा मिली ।
सादर।
कुसुम जी, सच्चे अर्थों में आप पन्त जी की शिष्या हैं.
ReplyDeleteशुद्ध प्रांजल भाषा में प्रकृति-चित्रण की आप अनुपम चितेरी हैं.
हृदय से आभार आपका।
Deleteआपकी टिप्पणी से मन अभिभूत हुआ आदरणीय
अतिश्योक्ति ही सही पर पंतजी जैसे महान रचनाकार सा लेश मात्र भी लिख लूं तो लेखनी धन्य हुई समझूँ।
पुनः आभार सादर।
आपकी लिखी रचना सोमवार 5 सितम्बर ,2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
हृदय से आभार आपका संगीता जी पाँच लिंक में रचना का आना सदा सुखद अनुभव है।
Deleteसादर।
बहुत बढ़िया प्रकृति दर्शन करवाया आपने, कुसुम दी।
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका ज्योति बहन।
Deleteआपकी टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
सस्नेह।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार(०५-०९ -२०२२ ) को 'शिक्षा का उत्थान'(चर्चा अंक-४५४३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हृदय से आभार आपका अनिता जी।
Deleteचर्चा मंच पर रचना को देखना सदैव सुखद अनुभव है।
सादर सस्नेह।
आहा दी...शब्द नही मिल रहे सराहना के लिए।
ReplyDeleteआपके समृद्ध शब्द कोश से रूनझुन पाजेब पहन.कर इतराते बलखाते भाव के क्या कहने वाह्ह... अद्भुत शिल्प अति मनमोहक रचना दी।
हृदय से आभार आपका श्वेता।
Deleteइतनी प्यारी टिप्पणी जो स्वयं भी अपने आप में काव्य है , जो उस पाजेब के घुंघरूओं को छेड़ कर तान दे गई।
सस्नेह।
बेहद सुंदर
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका रंजू जी, सदा ब्लाग पर स्वागत है आपका।
Deleteसादर सस्नेह।
छायावादी काव्य का जो स्तुत्य अनुशरण करते हैं,उनमें से एक सुदक्ष रचनाकार आप भी हो प्रिय कुसुम बहन।अत्यंत सुन्दर रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं 🙏🌺🌺
ReplyDeleteलाजवाब प्रकृति चित्रण। आदरणीय गोपेश जी ने बिल्कुल सही कहा। बधाई और आभार।
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका आपकी बेजोड़ कलम से ये सराहना एक अमूल्य उपहार है मेरे लिए ।
Deleteसादर।
बहुत ही सुन्दर रचना सखी प्रकृति का अद्भुत चित्रण
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका सखी।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
सस्नेह।
आपकी सृजन साधना अद्भुत है । शब्द शिल्प का कौशल मन्त्रमुग्ध करता है । अत्यंत सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका मीना जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से हृदय आनंद से भर गया।
Deleteआप सभी का साथ ही मेरा हौंसला है।
सस्नेह।