खण्डित वीणा
क्लांत हो कर पथिक बैठा
नाव खड़ी मझधारे
चंचल लहर आस घायल
किस विध पार उतारे।
अर्क नील कुँड से निकला
पंख विहग नभ खोले
मीन विचलित जोगिणी सी
तृषित सिंधु में डोले
क्या उस घर लेकर जाए
भ्रमित घूम घट खारे।।
डाँग डगमग चाल मंथर
घटा मेघ मंडित है
हृदय बीन जरजर टूटी
साज सभी खंडित है
श्रृंग दुर्गम राह रोकते
संग न साथ सहारे।।
खंडित बीणा स्वर टूटा
राग सरस कब गाया
भांड मृदा भरभर काया
ठेस लगे बिखराया
मूक हुआ है मन सागर
शब्द लुप्त हैं सारे ।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा '।
सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
सादर।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति कुसुम।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय दी।
Deleteआपकी टिप्पणी से उत्साह वर्धन हुआ।
सादर।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 6 अक्टूबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जी बहुत बहुत आभार आपका पाँचलिंक पर रचना को शामिल करने के लिए,ये मेरे लिए हर्ष का विषय है।
Deleteमैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
सादर।
वाह
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर।
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर।
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर।
बहुत ही सुंदर व सरहानीय सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मनीषा जी,आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसस्नेह।
बहुत अच्छी रचना है...।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर।
बहुत सुन्दर, सरस सृजन
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसस्नेह।
बढ़िया और सार्थक काव्य सृजन के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय कुसुम कोठारी जी। सादर।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना को नवीन उर्जा मिली ।
Deleteसादर।
खंडित बीणा स्वर टूटा
ReplyDeleteराग सरस कब गाया
भांड मृदा भरभर काया
ठेस लगे बिखराया
मूक हुआ है मन सागर
शब्द लुप्त हैं सारे ।।////
क्लांत, व्यथित मन की दशा को मार्मिकता से शब्दों में पिरोया है आपने प्रिय कुसुम बहन। अनुराग हो या विरह आपकी कलम का स्पर्श पा कर विशेष हो जाता है। बहुत-बहुत बधाई आपको 🌷🌷🌷🌷🙏
जी आदरणीय मैं चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
ReplyDeleteचर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
सादर।
आपकी मुग्ध करती प्रतिक्रिया से लेखन सदा नव आयाम पा जाता है रेणु बहन आपके शब्दों का चमत्कार साधारण को असाधारण बना देता है।
ReplyDeleteसदा स्नेह मिलता रहे।
सस्नेह आभार बहना।
खंडित बीणा स्वर टूटा
ReplyDeleteराग सरस कब गाया
भांड मृदा भरभर काया
ठेस लगे बिखराया
मूक हुआ है मन सागर
शब्द लुप्त हैं सारे ।।
वाह!!!
कमाल का सृजन कुसुम जी! आपकी रचनाएं सराहना से भी परे होती हैं शब्द लुप्त तो मेरे हो जाते हैं आपकी रचना पढ़कर...
किन शब्दों में प्रशंसा करें बस नमन आपको और आपकी लेखनी को।