पावस गीत
बादल चले ठन के
समर को जीत चतुरंगी।
जल भार लादा है
बनी सौदामिनी संगी ।।
चाबुक पवन मारे
सिसकती है घटा काली
रोये नयन सौ भर
तपन के तेज की पाली
आया बरसके अब
जलद लघु काय बजरंगी।।
पावस सदा आता
करें सब लोग अगवानी
धागे बिना देखो
प्रकृति सिलती वसन धानी
है व्योम भी चंचल
पहनता पाग सतरंगी।।
संगीत है अनुपम
नगाड़े दे धमक बजते
आषाढ़ अब बरसा
गगन में मेघ भी सजते
वर्षा मधुर सरगम
बजे ज्यूँ वाद्य सारंगी।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
प्रकृति पर आपका सृजन मन मोह जाता है आदरणीय दी गज़ब के बिंब 👌
ReplyDeleteपावस सदा आता
करें सब लोग अगवानी
धागे बिना देखो
प्रकृति सिलती वसन धानी
है व्योम भी चंचल
पहनता पाग सतरंगी..वाह!बहुत ही सुंदर।
स्नेह आभार!
Deleteआपकी मोहक प्रतिक्रिया से लेखन में नव उर्जा का संचार हुआ।
सस्नेह
पूरा दृश्य नज़र के सामने आ गया । वर्ष की फुहारें मन पर भी पड़ीं । काली घटा को बिना चाबुक के ही बरसा दें न 😊😊😊
ReplyDeleteखूबसूरत प्राकृतिक चित्रण
जी सादर आभार संगीता जी।
Deleteचाबुक तो मारना पड़ा नव गीत सदा नव व्यंजनाएं चाहता है तो कवि को कुछ खुराफात करनी ही पड़ती है । 😂😂
वैसे बिचारी घटाएं हवा की मार खाकर ही बरसती है।
बहुत सा आभार ऐसी जीवंत प्रतिक्रिया से सदा मन हर्षित होता है।
सदा स्नेह बनाए रखें।
सादर, सस्नेह।
प्रकृति के रंगों से सराबोर सुंदर सतरंगी रचना,बहुत शुभकामनाएं आपको कुसुम जी 💐💐🙏🙏
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी!
Deleteआपको पसंद आई लेखन सार्थक हुआ, प्रकृति मेरी पहली पसंद है उसको उकेरने में अगर थोड़ी भी सफल होती हूं तो मुझे आनंद की अनुभूति होती है।
सस्नेह।
वाह
ReplyDeleteजी आदरणीय बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसादर।
बहुत सुन्दर शब्दों में प्रकृति का वर्णन
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका अनुपमा जी ।
Deleteउर्जावान प्रतिक्रिया।
सस्नेह।
बहुत बहुत सुन्दर वर्णन
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसादर।
बारिश ना होने के बाद भी आपकी ये कविता मन को भिगो रही है----बहुत खूब कुसुम जी, पावस सदा आता
ReplyDeleteकरें सब लोग अगवानी
धागे बिना देखो
प्रकृति सिलती वसन धानी
है व्योम भी चंचल
पहनता पाग सतरंगी।।
---बहुत सुंदर
जी सस्नेह आभार आपका अलकनंदा जी।
Deleteमौसम की विविधता हमारे देश की विशेषथा है ,।
हमारे यहाँ अच्छा खासा सावन के पहले सावन आ गया है ।
आपकी सुंदर मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
सस्नेह।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (०७-०७-२०२१) को
'तुम आयीं' (चर्चा अंक- ४११८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
जी बहुत बहुत आभार आपका चर्चा मंच पर उपस्थित रहूंगी मैं।
Deleteचर्चा में स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
सादर सस्नेह।
बेहद खूबसूरत सृजन सखी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सखी।
Deleteउत्साहवर्धन हुआ आपकी प्रतिक्रिया से।
सस्नेह।
बहुत ही सुंदर गीत कुसुम दी।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन ।
Deleteआपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से सदा उत्साहवर्धन होता है।
सस्नेह।
चाबुक पवन मारे
ReplyDeleteसिसकती है घटा काली
रोये नयन सौ भर
तपन के तेज की पाली
आया बरसके अब
जलद लघु काय बजरंगी।।---गहन रचना---
बहुत बहुत आभार आपका,आपकी विश्लेषणात्मक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसादर।
प्रकृति को मनोरम चित्रण । अति सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मीना जी
Deleteआपकी टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
सदा स्नेह बनाए रखें।
सस्नेह।
प्रकृति के अनूठे बिंबों से सजा मनमोहक शब्द चित्र। सादर।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मीना जी।
Deleteआपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई,
सस्नेह।
पावस सदा आता
ReplyDeleteकरें सब लोग अगवानी
धागे बिना देखो
प्रकृति सिलती वसन धानी
है व्योम भी चंचल
पहनता पाग सतरंगी।।
....वाह कुसुम जी,शब्द नहीं,सुंदर श्रावणी गीत के तारीफ़ के लिए।प्रकृति की सुंदरता को लेखनी द्वारा कितनी ख़ूबसूरती से आप उतार देती हैं,सादर नमन।
बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी । आपकी मोहक व्याख्यात्मक टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
ReplyDeleteसस्नेह।
घनन घनन घिर गया है बदरा... अति सुन्दर ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
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