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Sunday 18 April 2021

विषधर


 विषधर


वीण लेकर ढूँढ़ते हैं

साँप विषधर भी सपेरे

नाग अब दिखते नहीं हैं

विष बुझे मानव घनेरे।


जोर तानाशाह दिखते

हर गली हर क्षेत्र भरके

पूँछ दाबे श्वान बैठा

कब हिलाए और सरके

काठ की नौका पुरानी

आज लहरों को उधेड़े।।


कौन तूती की सुने जब

बज रहे गहरे नगाड़े।

घोर विस्मय देख लो जी

कोढ़ को अब थूक झाड़े।

है मचा हड़कंप भारी

दूर है उगते सवेरे।।


डूबते हैं अब किनारे

नाव चढ़ कर यान बैठी

तारने का काम प्रभु का

आदमी की जात पैठी

हो भला सबका विधाता

राम धुन मन पर उकेरे।।


कुसुम कोठारी "प्रज्ञा"

38 comments:

  1. बहुत सुंदर सृजन सखी 👌

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सखी उत्साहवर्धन के लिए।
      सस्नेह।

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  2. सच्चाई बयान की है आपने कुसुम जी। देशवासियों की आंखों से परदा हटाने के लिए ऐसी ही रचनाओं की ज़रूरत है आज।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका जितेन्द्र जी।
      आपकी व्याख्यात्मक टिप्पणी से रचना मुखरित हुई।
      रचना के भावों को समर्थन देने के लिए हृदय तल से आभार।

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  3. बिल्कुल सही सूरतेहाल की बयानी।

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    1. जी सादर आभार आपका।
      भावों को सार्थकता देती प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
      सादर।

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  4. बहुत ही शानदार 💐💐💐

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    1. स्वागत सखी।
      ढेर सा स्नेह आभार।
      सस्नेह।

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  5. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, कुसुम दी।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
      सस्नेह।

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  6. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना ।इस समय देश की यही स्थिति है ।

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    1. रचना में निहित भावों को समर्थन देती प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सादर आभार।

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  7. वाह-वाह।
    विचारों का अच्छा सम्प्रेषण है।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      आपकी टिप्पणी से लेखन को नव उर्जा मिली।
      सादर।

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  8. हर बंध लाजवाब और निशब्द करने के साथ चक्षु खोलने वाला। आपके सृजन में भाव संप्रेषण अद्भुत है ।

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    1. मीना जी आपकी मोहक प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन तो होता ही है साथ ही मन को एक सुकून मिलता है जो सदा सुखद होता है।
      बहुत बहुत सा स्नेह आभार।

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  9. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-4-21) को "श्वासें"(चर्चा अंक 4042) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    1. बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी।
      चर्चा मंच पर रचना को रखने के लिए ।
      ये मंच सदा मेरे लिए सम्मानिय हैं ।
      सादर सस्नेह।

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  10. कौन तूती की सुने जब
    बज रहे गहरे नगाड़े।
    घोर विस्मय देख लो जी
    कोढ़ को अब थूक झाड़े।
    है मचा हड़कंप भारी
    दूर है उगते सवेरे।।
    अत्यंत मनभावन व प्रभावशाली सृजन।।।।। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया कुसुम जी।

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    1. आपकी विस्तृत टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ पुरुषोत्तम जी।
      सुंदर सार्थक प्रतिक्रिया के लिए हृदय तल से आभार।
      सादर।

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  11. बहुत सुन्दर सृजन प्रिय कुसुम।

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार दी आपका आशीर्वाद मिला रचना स्वत:ही सार्थक हुई।
      सादर ।

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  12. बहुत प्रभावशाली व यथार्थवादी लेखन,

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    1. बहुत बहुत आभार आपका अनिता जी आपको लेखन पसंद आया । रचना मुखरित हुई।
      सादर सस्नेह।

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  13. वाकई सब उलट पलट ही हो रहा .... यथार्थ को कहती रचना ।

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    1. भावों को समर्थन मिला रचना प्रवाहमान हुईं।
      बहुत बहुत आभार आपका संगीता जी।
      सस्नेह।

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  14. जो हो रहा है उसकी परतें खोलती
    शानदार औऱ प्रभावी रचना

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      आपकी व्याख्यात्मक टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
      सादर।

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  15. बहुत ही सुन्दर प्रभावी गीत .ये ही अनुभूतियाँ हम सबकी भी हैं लेकिन एक अच्छा गीत आपने लिख दिया ..वाह

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    1. जी अभी सभी संवेदनशील मन ऐसे भाव रखता है।
      भावों की तहतक जकर रचना को समर्थन देने के लिए हृदय तल से आभार।
      सादर सस्नेह।

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  16. वाह ... भावनाओं की उत्ताल तरंगें मन को आद्य्ताम की और ले जाती हैं ...
    बहुत सुन्दर रचना ...

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    1. बहुत बहुत आभार आपका नासवा जी आपकी व्याख्यात्मक टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
      सादर ।

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  17. वाह!गज़ब का सृजन आदरणीय कुसुम दी जी।
    हर बंद सराहनीय।
    सादर

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    1. बहुत बहुत आभार आपका प्रिय बहना।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार।
      सस्नेह।

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  18. बहुत सुंदर तरीके से लयबद्ध गीत में आपने आज के कठोर यथार्थ को संप्रेषित कर दिया, गाकर जख्म बयान करने की सुंदर कला को मेरा हार्दिक नमन ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी ।
      सच कहूं तो नव गीत शिल्प में बंधकर अगर भाव संप्रेषण सही ढंग से कर पाता है तो ये रचनाकार के लिए सुखद अनुभव है।
      आपकी व्याख्यात्मक टिप्पणी से मन प्रसन्न हुआ और लेखन को नव उर्जा मिली।
      सस्नेह।

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  19. बहुत ही सुन्दर गीत

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    1. बहुत बहुत आभार आपका मनोज जी ।
      रचना को सार्थकता मिली।
      सादर।

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