चौपाई छंद आधारित गीत।
निसर्ग मनोहर
चंदन वन महके महके से
पाखी सौरभ में बहके से
लिपट व्याल बैठे हैं घातक
चाँद आस में व्याकुल चातक।।
रजनी आई धीरे धीरे
इंदु निशा का दामन चीरे
नभ पर सुंदर तारक दल है
निहारिका झरती पल पल है।।
निशि गंधा से हवा महकती
झिंगुर वाणी लगे चहकती
नाच रही उर्मिल उजियारी
खिली हुई है चंपा क्यारी।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
अति सुंदर
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteबहुत सुन्दर गीत
ReplyDeleteजी आभार आपका उत्साहवर्धन हुआ।
Deleteसादर।
वाह.....बहुत सुन्दर प्रिय कुसुम
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय दी।
Deleteआपकी टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 07.01.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
लेखन को सदा नवीन ऊर्जा मिलती है जब चर्चा में रचना शामिल होती है।
Deleteहृदय तल से आभार।
प्राकृति के सुन्दर रूप को बाखूबी उतारा है शब्दों में ...
ReplyDeleteबहुत खूब ...
बहुत बहुत आभार आपका नासवा जी,आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया सदा लेखन में नव उर्जा का संचार करती है।
Deleteसादर।
वाह
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteअतिसुन्दर रचना।
ReplyDeleteसादर।
बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी।
Deleteब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteअभिनव प्रयोग।
सादर आभार आपका आदरणीय।
Deleteआपकी सार्थक प्रतिक्रिया से नव प्रयोग पर उत्साहवर्धन होगा।
सादर।
बहुत खूब अप्रतिम
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका, उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया।
Deleteबहुत बढ़िया।
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आने के लिए आप का बहुत बहुत धन्यावाद। नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
बहुत बहुत आभार आपका,ब्लाग पर आपका सदा इंतजार रहेगा।
Deleteआपके ब्लॉग पर सुंदर अनुभव ।
सस्नेह।