लो प्राची के नीले पट पर
सूर्य निशा को कोर लिया ।
जल उठा एक दीपक स्वर्णिम
उषा के लहरे आंचल में
गूंज रही है सरगम जैसे
सरि के निर्मल कल-कल में
अभी पपीहा जाकर सोया
रटा रात भर रोर पिया।।
चलती होले होले अनमन
याद पुरानी का था घेरा
मन के सूने मधुबन पर है
सूखी लतिका का डेरा
शुष्क पात की झांझरिया ने
शांत चित्त झकझोर दिया।।
अरविंद महके मधुप डोलते
किरणें खेल रही जल में
चारों ओर उजाला पसरा
यौवन चढ़ा चलाचल में
उड़ते चपल पाखियों ने फिर
तन मन सभी विभोर किया।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
सुन्दर बिम्बों के साथ
ReplyDeleteबेहतरीन नवगीत।
जी आदरणीय आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसादर
बेहतरीन।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन हुआ।
Deleteसादर।
सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय
Deleteसादर।
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना |
ReplyDeleteसुंदर उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
Deleteसादर।
सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका गगन जी।
Deleteसादर।
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 01 फ़रवरी 2021 को 'अब बसन्त आएगा' (चर्चा अंक 3964) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत बहुत आभार आपका, चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
Deleteमैं चर्चा पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
सादर।
चारों ओर उजाला पसरा
ReplyDeleteयौवन चढ़ा चलाचल में
उड़ते चपल पाखियों ने फिर
तन मन सभी विभोर किया।
वाह! वाह! वाह! सुंदर सृजन।
बधाई।
आपने मन रसमय कर दिया। आभार।
संधु जी आपकी मोहक प्रतिक्रिया से लेखन में नव उर्जा का संचार हुआ।
Deleteसस्नेह आभार आपका।
अच्छी रचना, बधाई आपको।
ReplyDeleteब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका।
वाह!सराहना से परे दी समझ नहीं आता कौन से बंद को बेहतर कहूँ।
ReplyDeleteसादर
सस्नेह आभार प्रिय बहना।
Deleteआपकी मनभावन टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
सस्नेह।
तन मन अति विभोर हुआ । अति सुन्दर भाव एवं कथ्य ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार अमृता जी सुंदर सराहना से रचना गतिमान हुई।
Deleteसस्नेह।
अति मनमोहक सृजन दी।
ReplyDeleteहर बंध सरस और मनभावन है।
प्रकृति पर आपकी लेखनी का सहज प्रवाह निःशब्द कर जाता है सदा।
सादर।
बहुत बहुत सा स्नेह आभार श्वेता, आपकी सुंदर प्रतिक्रिया सच मन विभोर कर देती है।
Deleteलेखन को प्रवाह देती मोहक प्रतिक्रिया।
सस्नेह।
मुग्ध करती रचना।
ReplyDeleteजी लेखन को समर्थन देती प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई ।
Deleteसादर आभार आपका।
अरविंद महके मधुप डोलते
ReplyDeleteकिरणें खेल रही जल में
चारों ओर उजाला पसरा
यौवन चढ़ा चलाचल में
उड़ते चपल पाखियों ने फिर
तन मन सभी विभोर किया।।
वाह !!!
बहुत सुंदर चित्रण कुसुम जी 🌹🙏🌹