राष्ट्रीय बालिका दिवस पर सभी खिलती कलियों को समर्पित
बेटियाँ
और फिर वो उड़ चली लो
तोड़ कर सब आज बेड़ी
थाम टुकड़ा आसमानी
जो बची खुशियाँ समेटी।।
थी हृदय में एक ज्वाला
कामना पर सात पहरे
मार कर जीती रही वो
मन दबाये भाव गहरे
मान औ सम्मान पर फिर
शीघ्र सब की आँख टेढ़ी।।
कौन सी घड़ियों बनी थी
विधि अमानित सी कठिनतम
आश्रिता होगी सदा ही
घोर जीवन में घिरा तम
बंद बाड़े खूंट बाँधी
मौन रंभाती बछेड़ी।।
कम नही बेटी किसी से
ये प्रमाणित हो चुका है
योग्यता के सामने अब
हर किसी का सर झुका है
कल्पना ही नाचती हैं
धार दुर्गा रूप बेटी ।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
वाह
ReplyDeleteथी हृदय में एक ज्वाला
ReplyDeleteकामना पर सात पहरे
मार कर जीती रही वो
मन दबाये भाव गहरे
मान औ सम्मान पर फिर
शीघ्र सब की आँख टेढ़ी।।..बेटियों के लिए प्रेरणास्रोत बहुत सुन्दर रचना रचना..
कम नही बेटी किसी से
ReplyDeleteये प्रमाणित हो चुका है
योग्यता के सामने अब
हर किसी का सर झुका है
कल्पना ही नाचती हैं
धार दुर्गा रूप बेटी ।।
सुंदर रचना....
थी हृदय में एक ज्वाला
ReplyDeleteकामना पर सात पहरे
मार कर जीती रही वो
मन दबाये भाव गहरे
कड़वी सच्चाई व्यक्त की है आपने, कुसुम दी।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसामयिक और सुन्दर रचना।
ReplyDelete--
गणतन्त्र दिवस की पूर्वसंध्या पर हार्दिक शुभकामनाएँ।
बेटियों पर लिखी बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबधाई
और फिर वो उड़ चली लो
ReplyDeleteतोड़ कर सब आज बेड़ी
थाम टुकड़ा आसमानी
जो बची खुशियाँ समेटी।। बहुत सुन्दर रचना बधाई हो आपको
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