विपन्नता
नारों से कब पेट भरेगा
छोड़ो अब तो दुर्जनता
जनता भोग रही दुख कितने
कारण है बस विपन्नता।
हाहाकार मचा है भारी
नैतिकता की डोर सड़ी
उठा पटक में बापूजी की
ले भागा है चोर छड़ी
ऐसे भारत के सपने कब
बनी विवशता अभिन्नता ।।
साधन नही पर्याप्त मात्रा
रस्सा कस्सी मची हुई
अपनी अपनी रोटी सेके
सिद्धांतों पर चढ़ी जुई
मरे भूख से जीव तड़पते
एक शाप है निर्धनता।।
दशानंन सी लिप्सा जागी
मानवता का भाव दहा
प्रचण्ड विषाणु ऐसा आया
दानवता बस दिखा रहा
शापित सी हर राह हुई है
गली गली में निर्जनता ।।
कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 18 जनवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार आपका,पाँच लिंक में रचना को रखने के लिए तहे दिल से शुक्रिया।
Deleteमैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
सस्नेह।
वाह!!!!
ReplyDeleteविपन्नता पर बहुत सटीक सुन्दर लाजवाब नवगीत।
बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को सदा प्रवाह मिलता है और मुझे लिखने की उर्जा।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसुन्दर सृजन।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteउत्साहवर्धन हुआ।
सादर।
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ।
Deleteउत्साहवर्धन हुआ।
सादर।
लाजवाब !!
ReplyDeleteमंत्रमुग्ध करता अप्रतिम सृजन ।
आपकी मोहक प्रतिक्रिया सदा मेरा उत्साह वर्धन करती है,मीना जी सस्नेह आभार आपका।
Deleteहृदयस्पर्शी सृजन सखी।
ReplyDeleteनारों से कब पेट भरेगा
ReplyDeleteछोड़ो अब तो दुर्जनता
जनता भोग रही दुख कितने
कारण है बस विपन्नता।
वर्तमान को आईना दिखाती बेहतरीन रचना...🌹🙏🌹
रचना के भावों को समर्थन देती सार्थक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई , बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसस्नेह।
सोचने को विवश करती हुई बहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteआपका विशेष ध्यान आकर्षित कर पाई आदरणीय, रचना को नये आयाम मिले।
Deleteसादर।
विडंबना भी तो यही है कि जीव भूख से तड़प कर भले दम तोड़ दे पर कुछेक को सिर्फ अपनी ही रोटी सेकनी होती है
ReplyDeleteरचना में निहित भावों पर विशेष टिप्पणी से रचना के भाव स्पष्ट हुए।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका गगन जी।
सुंदर और सार्थक रचना। बधाई और आभार।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका विश्व मोहन जी।
Deleteप्रबुद्ध समर्थन रचना को सार्थक कर गया।
सादर।
बहुत ही सुन्दर रचना।
ReplyDeleteआपकी सुंदर प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई आदरणीय।
Deleteसादर आभार आपका।
बहुत बहुत आभार आपका।
ReplyDeleteचर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
मैं चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
सादर।