दोहा छंद- दीप माला
1
नीले निर्मल व्योम से, चाँद गया किस ओर।
दीपक माला सज रही, जगमग चारों छोर।
2 दीप मालिका ज्योति से, झिलमिल करता द्वार।
आभा बिखरी सब दिशा, नही हर्ष का पार।
3 पावन आभा ज्योति का, फैला पुंज प्रकाश।
नाच रहा मन मोर है, सभी दिशा उल्लास।।
4दूर हुआ जग से तमस छाया है उजियार।
जन जन में बढ़ता रहे, घनिष्ठता औ प्यार।
5 स्वर्ण रजत सा दीप है, माँ के मंदिर आज।
रिद्धि-सिद्धि घर पर रहे, करना पूरण काज।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteसादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 13-11-2020) को "दीप से दीप मिलें" (चर्चा अंक- 3884 ) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
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"मीना भारद्वाज"
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 12 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १३ नवंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत सार्थक सृजन।
ReplyDeleteधनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।
बहुत सुंदर दोहे 🙏
ReplyDeleteदीपोत्सव पर हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🚩🙏
- डॉ शरद सिंह
बेहद खूबसूरत!
ReplyDeleteआदरणीया मैम,
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी रचना जो दीपोत्सव का आनंद मन में भर देती है। इसको पढ़ कर एक बहुत ही शुभ और सुन्दर अनुभूति होती है। इस प्यारी सी रचना के लिए हृदय से आभार व सादर नमन।
दीपोत्सव की दिव्यता से मुखरित कविता मुग्ध करती है - - दीपोत्सव की असंख्य शुभकामनाएं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर दोहे
ReplyDeleteसुंदर दोहे
ReplyDelete👏👏👏
मंगलकामनाएं
🌷🌻🌹