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Friday 20 December 2019

न्याय अन्याय

न्याय और अन्याय का कैसा लगा है युद्ध
एक जिसको न्याय कहे दूसरा उस से क्रुद्ध।
बिन सोचे समझे ,विवेक शून्य हो ड़ोले
आंखों पट्टी बांध कर हिंसा की चाबी खोले
पाने को ना जाने क्या है,सब कुछ ना खो जाए
हाथ मलता रह जाएगा जो चुग पंछी उड़ जाए
कोई लगा कर  आग दूर तमाशा देखे
अपना घर फूंक कर कौन रोटियां सेके
समय रहते संभल जाओ वर्ना होगा पछताना
स्वार्थ से ऊपर उठ देश हित का पहनो बाना।

                         कुसुम  कोठारी।

17 comments:

  1. सार्थक अभिव्यक्ति

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    1. सस्नेह आभार सखी त्वरित प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला।

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  2. बहुत सार्थक व सटीक रचना दी

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    1. बहुत सा स्नेहिल आभार बहना ।
      प्रोत्साहन मिला।

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  3. राजनीति के कुशल खिलाड़ी कृष्णा भी जब कौरव और यादव कुल के महाविनाश को नहीं रोक सकें , जबकि दुर्योधन उनका समधी था और साम्ब पुत्र..।
    अतः बस यही कहूँगा कि नियति के समक्ष सभी विवश हैं।

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    1. ऐसा ही कुचक्र है ये कुर्सी और सत्ता की लोलुपता जो सदियों से चली आ रही है, किरदार बदलते रहते हैं पर हालात बस उन्नीस इक्कीस।
      बहुत बहुत आभार आपका भाई सुंदर व्याख्यात्म टिप्पणी के लिए जो सहज एक दिशा बोध दे रही है।

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  4. "स्वार्थ से ऊपर उठ देश हित का पहनो बाना"

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    1. जी सादर आभार आपका।
      मंच पर स्वागत है आपका।

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(२२-१२ -२०१९ ) को "मेहमान कुछ दिन का ये साल है"(चर्चा अंक-३५५७) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    **
    अनीता सैनी

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    1. जी सादर आभार आपका।
      मैं जरूर प्रयासरत रहूंगी चर्चा मंच पर आना मेरा सौभाग्य है।

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  6. जी सादर आभार मैं चर्चा में जरुर उपस्थित रहूंगी।

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  7. सार्थक समयानुकूल रचना।

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  8. This comment has been removed by the author.

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    1. जी नमस्ते,
      आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
      २३ दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
      पांच लिंकों का आनंद पर...
      आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,

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  9. देश-हित की कौन सोचता है? सबके लिए कुर्सी-हित और आत्म-हित सर्वोपरि है.
    अमन-शांति की किसे कामना है? कहीं घृणा की तो कहीं द्वेष की भावना है !

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  10. सार्थक और सटीक अभिव्यक्ति ,सादर नमन कुसुम जी

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  11. समय रहते संभल जाओ वर्ना होगा पछताना
    स्वार्थ से ऊपर उठ देश हित का पहनो बाना
    बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति।

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