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Thursday 23 August 2018

इन आंखों के कितने अफसाने हैं

आंखें बेजुबान कितना बोलती है
कभी  रस कभी  जहर घोलती है
बिन तराजु  ये तो मन  तोलती है
कभी छुपाती कभी राज खोलती है।

इन आंखों के कितने अफसाने हैं
इन आंखों  के  कितने  दीवानें है
इन आंखों  में  कितने  बहाने  हैं
इन आंखों के चर्चे सदियों पुराने हैं।

आंखें कभी  जिंदगी का शुरूर है
आंखें कभी लिये कितना गुरुर है
आंखें ओढे ख्वाबों  का फितूर है
आंखे कभी झुकी कभी मगरुर है।

ये आंखें  कभी चुभते  तीर हैं
ये आंखें समेटे कितनी पीर है
ये आंखें  झुठ, कभी ताबीर है
ये आंखे कभी आम कभी मीर है।

            कुसुम कोठारी।

19 comments:

  1. Such a great line we are Online publisher India invite all author to publish book with us

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  2. वाह बेहतरीन रचना कुसुम जी

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    1. बहुत सा स्नेह आभार सखी ।

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  3. वाह
    शानदार और गहरी बातें कहती रचना .

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  4. बेहतरीन .....👌👌👌👌👌

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  5. गज़ब गज़ब गज़ब।।।।।।। इन आँखों के कितने अफ़साने हैं!!!!

    इन आंखों के कितने अफसाने हैं
    इन आंखों के कितने दीवानें है
    इन आंखों में कितने बहाने हैं
    इन आंखों के चर्चे सदियों पुराने हैं।

    बेमिसाल बेमिसाल दी जी। wahhhhhh। इन आँखों की जितनी परिधि है, उससे गहन आपकी दूरदृष्टि है। एक से बढ़कर एक तब्सिरा। अलहदा ख़यालात। यह सब आप ही देख सकतीं हैं। रच सकतीं हैं। नमन





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    1. सुप्रभात।
      सस्नेह आभार भाई आपकी जबरदस्त प्रतिपंक्तियां रचना को खास बना गई ।
      सदा उत्साह वर्धन के लिये शुक्रिया ढेर सा ।

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  6. वाह सखी लाजवाब लिखा 👌👌👌

    आप जैसी पारखी नजर हो तो क्या मजाल की कुछ छुप जाये
    बहुत सुन्दर लिखा ....शानदार

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    1. सुप्रभात सखी।
      बहुत सा स्नेह और उत्साह बढाती आपकी प्रतिक्रिया का आभार सखी ।

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  7. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २७ अगस्त २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. सस्नेह आभार ।मै अवश्य आऊंगी ।

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  8. सादर आभार।
    जी मै अवश्य आऊंगी ।

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  9. बहुत ही सुन्दर आंखों की व्याख्या सखी बहुत ही
    भावप्रवण रचना

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    1. सस्नेह आभार सखी ।
      आंखे बेजुबान है फिर भी कर देती खुद की व्याख्या बोलती तो न जाने क्या कहती....

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  10. इन आंखों के कितने अफसाने हैं
    इन आंखों के कितने दीवानें है
    इन आंखों में कितने बहाने हैं
    इन आंखों के चर्चे सदियों पुराने हैं।
    बहुत खूब कुसुम बहन -- आखों के इन अफसानों में एक अफसाना आपकी कलम से - बहुत ही सरस और सहज सा !!!!!सुंदर रचना आखों के बहाने से | सस्नेह --

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  11. रेणू बहन आप जब भी आते हो, भीनी सौरभ सी छा जाती है, मै आपकी सराहना की भी क्या सराहना करूं समझ नही पाती सस्नेह बहन, आपकी उपस्थिति का सदा इंतजार रहता है

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