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Wednesday 9 May 2018

जीवन एक परीक्षा

जीवन पल पल एक परीक्षा
महाविलय की अग्रिम प्रतिक्षा।

अतृप्त सा मन कस्तुरी मृग सा
भटकता खोजता अलब्ध सा
तिमिराछन्न परिवेश मे मूढ मना सा
स्वर्णिम विहान की किरण ढूंढता
छोड घटित अघटित खोजता ।
जीवन पल पल एक परीक्षा...

महासागर के महा द्वंद्व सा
जलता रहता बङवानल सा
महत्वाकांक्षा की धूंध मे घिरता
खुद से ही कभी न्याय न करता
सृजन मे भी संहार ढूंढता ।
जीवन पल पल एक परीक्षा...

कभी होली भरोसे की जलाता
अगन अबूझ समझ नही पाता
अव्यक्त लौ सा जलता जाता
कभी मन प्रस्फुटित दिवाली मनाता
खुश हो मलय पवन आस्वादन करता ।
जीवन पल पल एक परीक्षा....

भ्रमित मन की रातें गहरी जितनी
उजाला दिन का उतना कमतर
खण्डित आशा अश्रु बन बहती
मानवता क्षत विक्षत चित्कार करती
मन आकांक्षा अपूर्ण अविचल रहती।
जीवन पल पल एक परीक्षा  ....

                     कुसुम कोठारी।

15 comments:

  1. क्या कहूं निःशब्द कर दिया आप ने बहुत अच्छा लिखा लाजवाब।

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  2. 👏👏👏👏👏वाह मीता वाह
    काव्य लिखा या सत्संग
    पावन सा आत्म मनन
    शब्दों का अद्भुत शृंगार
    साथ मैं भावों का अलंकरण !
    नमन नमन नमन

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    1. आभार मीता भाव भीनी प्रतिक्रिया ।

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  3. आपकी लिखी रचना शुक्रवार ११ मई २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. मेरी रचना को चुनने का सादर आभार ।

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  4. वाह!!लाजवाब रचना!

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    1. शुभा जी आपकी सक्रिय प्रतिक्रिया ब्लॉग पर देख बहुत खुशी हुई।

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  5. अद्भुत शब्दों की लय में विलय होता भावों का सुरीला प्रवाह! बधाई और आभार!!!

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    1. जी सादर आभार सक्रिय व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया के लिये ।

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  6. भ्रमित मन की रातें गहरी जितनी
    उजाला दिन का उतना कमतर
    खण्डित आशा अश्रु बन बहती
    मानवता क्षत विक्षत चित्कार करती
    मन आकांक्षा अपूर्ण अविचल रहती।
    जीवन पल पल एक परीक्षा ....
    प्रिय कुसुम बहन -- एक और चमत्कृत क्र देने वाला विद्वतापूर्ण सृजन | सचमुच हर कदम पर ये जीवन एक परीक्षा है | बहुत ही मर्मस्पर्शी और सार्थक रचना के लिए हार्दिक बधाई | सस्नेह --

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    1. रेणू बहन आपकी सार्थक प्रतिक्रिया सदा उत्साहित करती है। सादर आभार।

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  7. अतृप्त सा मन कस्तुरी मृग सा
    भटकता खोजता अलब्ध सा
    तिमिराछन्न परिवेश मे मूढ मना सा
    स्वर्णिम विहान की किरण ढूंढता
    छोड घटित अघटित खोजता ।
    जीवन पल पल एक परीक्षा...

    क्या कहने इस रचना के जितना कहूँ कम पड़ जाए सागर गहराई समायी है इसमें हम इस काबिल नहीं की आपकी इस रचना की सराहना कर सकें बस नमन कर सकते हैं
    सादर नमन

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  8. आपका स्नेह बहन मै अभिभूत हुई।
    आभार ढेर सा।

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