आजकल डर के कारण
सांसे कुछ कम ले रही हूं
अगली पीढ़ी के लिये
कुछ प्राण वायु छोड़ जाऊं,
डरती हूं क्या रहेगा
उनके हिस्से
बिमार वातावरण
पानी की कमी
दूषित खाद्य पदार्थ
डरा भविष्य
चिंतित वर्तमान
जीने की जद्दोजहद
झूठ, फरेब
बेरौनक जिंदगी
स्वार्थ
अविश्वास
धोखा फरेब
अनिश्चित जीवन
वैर वैमनस्य
फिर से दिखता
आदम युग
यह भयावह
चिंतन मुझे डराता है
सोचती हूं अभीसे
पानी की
एक एक बूंद का
हिसाब रखूं
कुछ तो सहेजू
उनके लिये
कुछ अच्छे संस्कार
दया कोमल भाव
सहिष्णुता
मजबूत नींव
धैर्य आदर्श
कि वो अपने
पूर्वजों को कुछ
आदर से याद करें
चैन से जी सके
और अपनी अगली पीढ़ी को
कुछ अच्छा देने की सोचें....
कुसुम कोठारी।
सांसे कुछ कम ले रही हूं
अगली पीढ़ी के लिये
कुछ प्राण वायु छोड़ जाऊं,
डरती हूं क्या रहेगा
उनके हिस्से
बिमार वातावरण
पानी की कमी
दूषित खाद्य पदार्थ
डरा भविष्य
चिंतित वर्तमान
जीने की जद्दोजहद
झूठ, फरेब
बेरौनक जिंदगी
स्वार्थ
अविश्वास
धोखा फरेब
अनिश्चित जीवन
वैर वैमनस्य
फिर से दिखता
आदम युग
यह भयावह
चिंतन मुझे डराता है
सोचती हूं अभीसे
पानी की
एक एक बूंद का
हिसाब रखूं
कुछ तो सहेजू
उनके लिये
कुछ अच्छे संस्कार
दया कोमल भाव
सहिष्णुता
मजबूत नींव
धैर्य आदर्श
कि वो अपने
पूर्वजों को कुछ
आदर से याद करें
चैन से जी सके
और अपनी अगली पीढ़ी को
कुछ अच्छा देने की सोचें....
कुसुम कोठारी।
लाजवाब मीता
ReplyDeleteस्नेह आभार मीता ।
Deleteबहुत खूबसूरत चिंतन कुसुम जी.
ReplyDeleteआज की परिस्थितियों को देखते हुए जरूरी है और लाजमी भी है यह डर.
बहुत बहुत शुभकामनाएं. 👏
जी सुधा जी समर्थन के लिए शुक्रिया।
ReplyDeleteशुभ संध्या।
वाह सुंदर
ReplyDeleteआपकी रचना ने तो हमे भी डरा दिया
सोते वर्तमान को भविष्य की चिंता कराती अद्भुत रचना 👌